श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 6: श्री चैतन्य महाप्रभु तथा रघुनाथ दास गोस्वामी की भेंट  »  श्लोक 163
 
 
श्लोक  3.6.163 
অঙ্গনে আসিযা তেঙ্হো যবে দাণ্ডাইলা
রঘুনাথ আসি’ তবে দণ্ডবত্ কৈলা
अङ्गने आसिया तेंहो यबे दाण्डाइला ।
रघुनाथ आसि’ तबे दण्डवत् कैला ॥163॥
 
अनुवाद
जब यदुनन्दन आचार्य रघुनाथदास के आँगन में पधारे, तो रघुनाथदास उनके चरणों में नतमस्तक हुए।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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