|
|
|
श्लोक 3.6.143  |
নিশ্চিন্ত হঞা যাহ আপন-ভবন
অচিরে নির্বিঘ্নে পাবে চৈতন্য-চরণ” |
“निश्चिन्त ह ञा याह आपन - भवन ।
अचिरे निर्विघ्ने पाबे चैतन्य - चरण” ॥143॥ |
|
अनुवाद |
"सुनिश्चित होकर तुम अपने घर लौट जाओ। जल्दी ही तुम श्री चैतन्य महाप्रभु के चरणों में आश्रय पा लोगे।" |
|
|
|
✨ ai-generated |
|
|