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श्लोक 3.6.11  |
এই দুই জনার সৌভাগ্য কহন না যায
প্রভুর ‘অন্তরঙ্গ’ বলি’ যাঙ্রে লোকে গায |
एइ दुइ जनार सौभाग्य कहन ना याय ।
प्रभुर ‘अन्तरङ्ग’ बलि’ याँरे लोके गाय ॥11॥ |
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अनुवाद |
श्री चैतन्य महाप्रभु के अत्यंत घनिष्ठ तथा विश्वसनीय मित्रों के रूप में प्रसिद्ध रामानंद राय और स्वरूप दामोदर गोस्वामी के सौभाग्य का वर्णन करना अत्यंत ही कठिन है। |
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