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श्लोक 3.5.4  |
এক-দিন প্রদ্যুম্ন-মিশ্র প্রভুর চরণে
দণ্ডবত্ করি’ কিছু করে নিবেদনে |
एक - दिन प्रद्युम्न - मिश्र प्रभुर चरणे ।
दण्डवत् करि’ किछु करे निवेदने ॥4॥ |
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अनुवाद |
एक दिन प्रद्युम्न मिश्र नाम का एक भक्त श्री चैतन्य महाप्रभु के पास गए और नमस्कार करके उन्होंने बड़ी विनम्रता से उनसे कुछ पूछना चाहा। |
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