श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 5: प्रद्युम्न मिश्र का रामानन्द राय से उपदेश लेना  »  श्लोक 163
 
 
श्लोक  3.5.163 
শ্রদ্ধা করি’ এই লীলা যেই পডে, শুনে
গৌর-লীলা, ভক্তি-ভক্ত-রস-তত্ত্ব জানে
श्रद्धा क रि’ एइ लीला येइ पड़े, शुने ।
गौर - लीला, भक्ति - भक्त - रस - तत्त्व जाने ॥163॥
 
अनुवाद
श्रद्धा व प्रेम के साथ इन लीलाओं को पढ़ने और सुनने वाला व्यक्ति भक्ति, भक्तवत्सल और श्री चैतन्य महाप्रभु की लीलाओं के दिव्य रसों की सच्चाई को समझ सकता है।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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