धर्मः स्वनुष्ठितः पुंसां विष्वक्सेन - कथासु यः ।
नोत्पादयेद् यदि रतिं श्रम एव हि केवलम् ॥10॥
अनुवाद
“वर्णाश्रम धर्म के अनुसार अपने निश्चित कर्तव्यों का पालन तो कर रहा है, परंतु कृष्ण के प्रति सुप्त प्रेम को जगाता नहीं, उनके विषय में श्रवण और कीर्तन करने का रुचि जागृत नहीं करता, वह व्यक्ति निष्फल श्रम कर रहा है।”