বার বার নিষেধেন, তবু করে আলিঙ্গন
অঙ্গে রসা লাগে, দুঃখ পায সনাতন
बार बार निषेधेन, तबु करे आलिङ्गन ।
अङ्गे रसा लागे, दुःख पाय सनातन ॥134॥
अनुवाद
यद्यपि सनातन गोस्वामी ने बार-बार श्री चैतन्य महाप्रभु को गले लगाने से मना किया, परंतु महाप्रभु ने फिर भी ऐसा ही किया। इससे उनके शरीर पर सनातन के शरीर से निकली गीली मिट्टी की कांच लग गई। इस बात से सनातन गोस्वामी बहुत दुःखी हुए।