श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 3: अन्त्य लीला » अध्याय 20: शिक्षाष्टक प्रार्थनाएँ » श्लोक 51 |
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| | श्लोक 3.20.51  | কিবা তেঙ্হো লম্পট, শঠ, ধৃষ্ট, সকপট,
অন্য নারী-গণ করি’ সাথ
মোরে দিতে মনঃ-পীডা, মোর আগে করে ক্রীডা,
তবু তেঙ্হো — মোর প্রাণ-নাথ | किबा तेंहो लम्पट, शठ, धृष्ट, सकपट ,
अन्य नारी - गण क रि’ साथ।
मोरे दिते मनः - पीड़ा, मोर आगे करे क्रीड़ा ,
तबु तेंहो - मोर प्राण - नाथ ॥51॥ | | अनुवाद | "अथवा, चूँकि वे तो बिल्कुल ही एक बहुत चतुर और ढीठ लंपट हैं और धोखा देने की प्रवृत्ति उनमें हमेशा ही बनी रहती है, इसीलिए वे दूसरी स्त्रियों के पास जाते हैं। तब वे उनके साथ मेरे ही सामने मेरा मन दुखाने के लिये प्रेम की बातें करने लगते हैं। लेकिन इतने पर भी वे मेरे प्राणनाथ ही हैं।" | | |
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