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श्लोक 3.20.31  |
অতি-দৈন্যে পুনঃ মাগে দাস্য-ভক্তি-দান
আপনারে করে সṁসারী জীব-অভিমান |
अति - दैन्ये पुनः मागे दास्य - भक्ति - दान ।
आपनारे करे संसारी जीव - अभिमान ॥31॥ |
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अनुवाद |
भौतिक जगत् के बद्धजीव के रूप में स्वयं को मानते हुए, श्री चैतन्य महाप्रभु ने अत्यंत विनम्रतापूर्वक पुनः भगवान् की सेवा प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। |
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