श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 20: शिक्षाष्टक प्रार्थनाएँ  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  3.20.23 
বৃক্ষ যেন কাটিলেহ কিছু না বোলয
শুকাঞা মৈলেহ কারে পানী না মাগয
वृक्ष येन काटिलेह किछु ना बोलय ।
शुकाञा मैलेह कारे पानी ना मागय ॥23॥
 
अनुवाद
जब वृक्ष काटा जाता है तो वह विरोध नहीं करता और सूखने पर भी कभी किसी से पानी नहीं माँगता।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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