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श्लोक 3.20.23  |
বৃক্ষ যেন কাটিলেহ কিছু না বোলয
শুকাঞা মৈলেহ কারে পানী না মাগয |
वृक्ष येन काटिलेह किछु ना बोलय ।
शुकाञा मैलेह कारे पानी ना मागय ॥23॥ |
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अनुवाद |
जब वृक्ष काटा जाता है तो वह विरोध नहीं करता और सूखने पर भी कभी किसी से पानी नहीं माँगता। |
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