श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 20: शिक्षाष्टक प्रार्थनाएँ  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  3.20.2 
জয জয গৌরচন্দ্র জয নিত্যানন্দ
জযাদ্বৈত-চন্দ্র জয গৌর-ভক্ত-বৃন্দ
जय जय गौरचन्द्र जय नित्यानन्द ।
जयाद्वैत - चन्द्र जय गौर - भक्त - वृन्द ॥2॥
 
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु को शत-शत नमन! श्री नित्यानन्द प्रभु को शत-शत नमन! श्री अद्वैत चंद्र को शत-शत नमन तथा श्री चैतन्य महाप्रभु के सभी भक्तों को शत-शत नमन! ।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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