श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 20: शिक्षाष्टक प्रार्थनाएँ  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  3.20.12 
চেতো-দর্পণ-মার্জনṁ ভব-মহা-দাবাগ্নি-নির্বাপণṁ
শ্রেযঃ-কৈরব-চন্দ্রিকা-বিতরণṁ বিদ্যা-বধূ-জীবনম্
আনন্দাম্বুধি-বর্ধনṁ প্রতি-পদṁ পূর্ণামৃতাস্বাদনṁ
সর্বাত্ম-স্নপনṁ পরṁ বিজযতে শ্রী-কৃষ্ণ-সঙ্কীর্তনম্
चेतो - दर्पण - मार्जनं भव - महा - दावाग्नि - निर्वापणं श्रेयः - कैरव - चन्द्रिका - वितरणं विद्या - वधू - जीवनम् ।
आनन्दाम्बुधि - वर्धनं प्रति - पदं पूर्णामृतास्वादनं सर्वात्म - स्नपनं परं विजयते श्री - कृष्ण - सङ्कीर्तनम् ॥12॥
 
अनुवाद
"भगवान कृष्ण के पवित्र नाम संकीर्तन को परम विजय मिलती रहे, जो ह्रदय के दर्पण को स्वच्छ करता है और सांसारिक अस्तित्व की प्रज्वलित अग्नि के कष्टों को शांत करता है। यह संकीर्तन बढ़ते चंद्रमा के समान है जो सभी जीवों के बीच सौभाग्य के सफेद कमल का वितरण करता है। यह सभी ज्ञान का जीवन है। कृष्ण के पवित्र नाम का कीर्तन दिव्य जीवन के आनंदमय सागर को फैलाता है। यह सभी को शीतलता प्रदान करता है और प्रत्येक कदम पर पूर्ण अमृत का स्वाद लेने में सक्षम बनाता है।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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