श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 3: अन्त्य लीला » अध्याय 2: छोटे हरिदास को दण्ड » श्लोक 51 |
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| | श्लोक 3.2.51  | শুনি’ ব্রহ্মচারী কহে, — ‘করহ সন্তোষে
আমি ত’ আনিব তাঙ্রে তৃতীয দিবসে’ | शुनि’ ब्रह्मचारी कहे , - “करह सन्तोषे ।
आमि त’ आनिब ताँ रे तृतीय दिवसे” ॥51॥ | | अनुवाद | यह सुनकर नृसिंहानंद ब्रह्मचारी ने उत्तर दिया, "तुम दोनों सन्तोष रखो। मैं तुम दोनों को विश्वास दिलाता हूँ कि आज से तीसरे दिन मैं उन्हें यहाँ ले आऊँगा।" | | |
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