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श्लोक 3.2.48-49  |
আচম্বিতে নৃসিṁহানন্দ তাহাঙি আইলা
দুঙ্হে তাঙ্রে মিলি’ তবে স্থানে বসাইলা
দুঙ্হে দুঃখী দেখি’ তবে কহে নৃসিṁহানন্দ
‘তোমা দুঙ্হাকারে কেনে দেখি নিরানন্দ?’ |
आचम्बिते नृसिंहानन्द ताहाडि आइला ।
दुँहे ताँरे मिलि’ तबे स्थाने वसाइला ॥48॥
दुँहे दु:खी देखि’ तबे कहे नृसिंहानन्द ।
‘तोमा दुँहाकारे केने देखि निरानन्द ?’ ॥49॥ |
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अनुवाद |
एकाएक नृसिंहानन्द आये। जगदानन्द और शिवानन्द ने उन्हें अपने निकट बैठने का प्रबन्ध किया। उन्हें दोनों को इतना उदास देखकर, नृसिंहानन्द ने पूछा, "मुझे देखते ही तुम दोनों उदास क्यों लग रहे हो?" |
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