श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 2: छोटे हरिदास को दण्ड  »  श्लोक 159
 
 
श्लोक  3.2.159 
দুর্গতি না হয তার, সদ্-গতি সে হয
প্রভু-ভঙ্গী এই, পাছে জানিবা নিশ্চয”
दुर्गति ना हय तार, सद्गति से हय ।
प्रभु - भङ्गी एइ, पाछे जानिबा निश्चय ॥159॥
 
अनुवाद
"हरिदास का पतन नहीं हो सकता है; उसे निश्चित रूप से मुक्ति प्राप्त हुई होगी। यह श्री चैतन्य महाप्रभु की लीला है। तुम सभी इसे बाद में समझोगे।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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