श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 3: अन्त्य लीला » अध्याय 2: छोटे हरिदास को दण्ड » श्लोक 124 |
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| | श्लोक 3.2.124  | প্রভু কহে, — “মোর বশ নহে মোর মন
প্রকৃতি-সম্ভাষী বৈরাগী না করে দর্শন | प्रभु कहे, - मोर वश नहे मोर मन ।
प्रकृति - सम्भाषी वैरागी ना करे दर्शन ॥124॥ | | अनुवाद | श्री चैतन्य महाप्रभु बोले, “मेरा मन मेरे नियंत्रण में नहीं है। वह किसी ऐसे व्यक्ति को संन्यास आश्रम में नहीं देख सकता जो स्त्रियों से घुलमिलकर बातें करे। | | |
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