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श्लोक 3.19.72  |
উঘাড-অঙ্গে পডিযা শঙ্কর নিদ্রা যায
প্রভু উঠি’ আপন-কাঙ্থা তাহারে জডায |
उघाड़ - अङ्गे पड़िया शङ्कर निद्रा याय ।
प्रभु उठि’ आपन - काँथा ताहारे जड़ाय ॥72॥ |
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अनुवाद |
वे बिना कुछ ऊपर से ओढ़े सो जाते, और श्री चैतन्य महाप्रभु जगकर उन्हें अपनी रजाई दे देते। |
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