श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु का अचिन्त्य व्यवहार  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.19.7 
কহিহ তাঙ্হারে — ‘তুমি করহ স্মরণ
নিত্য আসি’ আমি তোমার বন্দিযে চরণ
कहिह ताँहारे ‘तुमि करह स्मरण ।
नित्य आ सि’ आमि तोमार वन्दिये चरण ॥7॥
 
अनुवाद
उनसे मेरी ओर से कहना, "कृपया यह याद रखें कि मैं प्रतिदिन यहां आकर आपके चरणों में नतमस्तक होता हूं।"
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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