श्री चैतन्य चरितामृत » लीला 3: अन्त्य लीला » अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु का अचिन्त्य व्यवहार » श्लोक 44 |
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| | श्लोक 3.19.44  | ‘যে-জন জীতে নাহি চায, তারে কেনে জীযায’,
বিধি-প্রতি উঠে ক্রোধ-শোক
বিধিরে করে ভর্ত্সন, কৃষ্ণে দেন ওলাহন,
পডি’ ভাগবতের এক শ্লোক | ‘ये - जन जीते नाहि चाय, तारे केने जीया य’
विधि - प्रति उठे क्रोध - शोक ।
विधिरे करे भर्सन, कृष्णे देन ओलाहन
पड़ि’ भागवतेर एक श्लोक ॥44॥ | | अनुवाद | “विधाता उसे व्यक्ति को क्यों जीने देता है, जो जीना नहीं चाहता?” इस सोच से श्री चैतन्य महाप्रभु में गुस्सा और शोक जाग उठा। तब उन्होंने श्रीमद्भागवत का एक श्लोक पढ़ा, जो विधाता को धिक्कारता और भगवान कृष्ण पर आरोप लगाता है। | | |
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