श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु का अचिन्त्य व्यवहार  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  3.19.4 
প্রভুর অত্যন্ত প্রিয পণ্ডিত-জগদানন্দ
যাহার চরিত্রে প্রভু পাযেন আনন্দ
प्रभुर अत्यन्त प्रिय पण्डित - जगदानन्द ।
याहार चरित्रे प्रभु पायेन आनन्द ॥4॥
 
अनुवाद
जगदानन्द पण्डित श्री चैतन्य महाप्रभु के बहुत ही प्रिय भक्त थे। महाप्रभु के उनके कार्यों को देखकर बहुत आनन्द मिलता था।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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