श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु का अचिन्त्य व्यवहार  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.19.32 
আচম্বিতে স্ফুরে কৃষ্ণের মথুরা-গমন
উদ্ঘূর্ণা-দশা হৈল উন্মাদ-লক্ষণ
आचम्बिते स्फुरे कृष्णेर मथुरा - गमन ।
उद्धुर्णा - दशा हैल उन्माद - लक्षण ॥32॥
 
अनुवाद
एकदम से श्री चैतन्य महाप्रभु के भीतर भगवान कृष्ण के मथुरा जाने का दृश्य उभर आया और वे उद्भूर्णा नामक उन्माद के लक्षण दिखाने लगे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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