श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु का अचिन्त्य व्यवहार  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  3.19.31 
উন্মাদ-প্রলাপ-চেষ্টা করে রাত্রি-দিনে
রাধা-ভাবাবেশে বিরহ বাডে অনুক্ষণে
उन्माद - प्रलाप - चेष्टा करे रात्रि - दिने ।
राधा - भावावेशे विरह बाड़े अनुक्षणे ॥31॥
 
अनुवाद
जब श्रीमती राधारानी के भावावेश में महाप्रभु की विरह - भावना प्रतिक्षण बढ़ती गई, तब श्री महाप्रभु के कार्य दिन और रात दोनों ही समय प्रचंड तथा अविवेकपूर्ण हो गए।
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.