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श्लोक 3.19.19  |
“প্রভুরে কহিহ আমার কোটি নমস্কার
এই নিবেদন তাঙ্র চরণে আমার |
“प्रभुरे कहिह आमार कोटि नमस्कार ।
एइ निवेदन ताँर चरणे आमार ॥19॥ |
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अनुवाद |
अपने गीत में अद्वैत प्रभु ने सर्वप्रथम भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के चरणकमलों में करोड़ों बार नतमस्तक होकर वंदन किया। उसके बाद उन्होंने उनके चरणकमलों में अपनी विनती निम्नलिखित रूप से प्रस्तुत की। |
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