श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 19: श्री चैतन्य महाप्रभु का अचिन्त्य व्यवहार  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  3.19.19 
“প্রভুরে কহিহ আমার কোটি নমস্কার
এই নিবেদন তাঙ্র চরণে আমার
“प्रभुरे कहिह आमार कोटि नमस्कार ।
एइ निवेदन ताँर चरणे आमार ॥19॥
 
अनुवाद
अपने गीत में अद्वैत प्रभु ने सर्वप्रथम भगवान श्री चैतन्य महाप्रभु के चरणकमलों में करोड़ों बार नतमस्तक होकर वंदन किया। उसके बाद उन्होंने उनके चरणकमलों में अपनी विनती निम्नलिखित रूप से प्रस्तुत की।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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