श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 18: महाप्रभु का समुद्र से बचाव  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  3.18.7 
কভু ভাবোন্মাদে প্রভু ইতি-উতি ধায
ভূমে পডি’ কভু মূর্চ্ছা, কভু গডি’ যায
कभु भावोन्मादे प्रभु इति - उति धाय ।
भूमे पड़ि’ कभु मूर्च्छा, कभु गड़ि’ याय ॥7॥
 
अनुवाद
कभी वो भावोन्माद में इधर-उधर दौड़ पड़ते और कभी जमीन पर गिरकर लोटने लगते।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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