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श्लोक 3.18.21  |
ক্ষণে ক্ষণে উঠে প্রেমার তরঙ্গ অনন্ত
জীব ছার কাহাঙ্ তার পাইবেক অন্ত? |
क्षणे क्षणे उठे प्रेमार तरङ्ग अनन्त ।
जीव छार काहाँ तार पाइबेक अन्त ? ॥21॥ |
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अनुवाद |
प्रेम के उस सागर में लहरों का उठना निरंतर और अनंत है। उनका कोई अंत नहीं है। इतनी विशाल लहरों की सीमाओं का अनुमान लगा पाना एक साधारण जीव के लिए कैसे संभव हो सकता है? |
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