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श्लोक 3.18.12  |
পূর্বে যেই দেখাঞাছি দিগ্-দরশন
তৈছে জানিহ ‘বিকার’ ‘প্রলাপ’ বর্ণন |
पूर्वे येइ देखाञाछि दिग्दरशन ।
तैछे जानिह ‘विकार’ ‘प्रलाप’ वर्णन ॥12॥ |
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अनुवाद |
जैसा कि मैं पहले ही इशारा कर चुका हूँ, मैं सिर्फ़ संक्षेप में ही प्रभु श्री चैतन्य महाप्रभु की पागलपन भरी वाणी और शारीरिक बदलावों का वर्णन कर रहा हूँ। |
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