श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 17: श्री चैतन्य महाप्रभु के शारीरिक विकार  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  3.17.32 
শুনি’ প্রভু গোপী-ভাবে আবিষ্ট হ-ইলা
ভাগবতের শ্লোকের অর্থ করিতে লাগিলা
शुनि’ प्रभु गोपी - भावे आविष्ट ह - इला ।
भागवतेर श्लोकेर अर्थ करिते लागिला ॥32॥
 
अनुवाद
यह श्लोक सुनकर श्री चैतन्य महाप्रभु गोपियों के भावों से अभिभूत हो गए और इसकी व्याख्या करने लगे।
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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