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श्लोक 3.16.94  |
‘এই দ্রব্যে এত স্বাদ কাহাঙ্ হৈতে আইল?
কৃষ্ণের অধরামৃত ইথে সঞ্চারিল’ |
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‘एइ द्रव्ये एत स्वाद काहाँ हैते आइल ?।
कृष्णेर अधरामृत इथे सञ्चारिल’ ॥94॥ |
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अनुवाद |
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श्री चैतन्य महाप्रभु जी विचार करने लगे, "इस प्रसाद में ऐसा स्वाद कहाँ से आया? निश्चित ही श्री कृष्ण के होठों से अमृत के स्पर्श से ऐसा हुआ है।" |
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