মালা পরাঞা প্রসাদ দিল প্রভুর হাতে
আস্বাদ দূরে রহু, যার গন্ধে মন মাতে
माला परा ञा प्रसाद दिल प्रभुर हाते ।
आस्वाद दूरे रहु, यार गन्धे मन माते ॥90॥
अनुवाद
भगवान जगन्नाथ के सेवकों ने सबसे पहले श्री चैतन्य महाप्रभु को माला पहनाई और फिर उन्हें भगवान जगन्नाथ का प्रसाद दिया। प्रसाद इतना स्वादिष्ट था कि केवल इसकी महक, उसके स्वाद का जिक्र छोड़ दें, ही मन को मस्त कर देने वाली थी।