श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 86
 
 
श्लोक  3.16.86 
এই লীলা নিজ-গ্রন্থে রঘুনাথ-দাস
‘গৌরাঙ্গ-স্তব-কল্পবৃক্ষে’ করিযাছেন প্রকাশ
 
 
एइ लीला निज - ग्रन्थे रघुनाथ - दास ।
‘गौराङ्ग - स्तव - कल्पवृक्षे करियाछेन प्रकाश ॥86॥
 
अनुवाद
 
  रघुनाथ दास गोस्वामी ने अपनी पुस्तक ‘गौरांग-स्तव-कल्पवृक्ष’ में इस घटना का बड़े ही सुंदर ढंग से वर्णन किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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