श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 85
 
 
श्लोक  3.16.85 
গরুডের পাছে রহি’ করেন দরশন
দেখেন, — জগন্নাথ হয মুরলী-বদন
 
 
गरुड़ेर पाछे रहि’ करेन दरशन ।
देखेन , - जगन्नाथ हय मुरली - वदन ॥85॥
 
अनुवाद
 
  श्री चैतन्य महाप्रभु विशाल स्तंभ, जिसे गरुड़-स्तंभ कहा जाता है, के पीछे खड़े हो गए और भगवान जगन्नाथ पर दृष्टि डाली। परंतु जैसे ही उन्होंने देखा, भगवान जगन्नाथ श्री कृष्ण बन गए, जिनके मुख में बाँसुरी थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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