‘তুমি মোর সখা, দেখাহ’ — কাহাঙ্ প্রাণ-নাথ?’
এত বলি’ জগমোহন গেলা ধরি’ তার হাত
‘तुमि मोर सखा, देखाह - काहाँ प्राण - नाथ?’ ।
एत बलि’ जगमोहन गेला ध रि’ तार हात ॥83॥
अनुवाद
श्री चैतन्य महाप्रभु ने द्वारपाल से कहा: “तुम मेरे हृदय के मित्र हो। कृपया मुझे मेरे आराध्य देवता को दिखला दो।” इतना कहने के बाद वे दोनों जगमोहन नामक स्थान पर गए, जहाँ से भगवान जगन्नाथ के दर्शन होते हैं।