श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 83
 
 
श्लोक  3.16.83 
‘তুমি মোর সখা, দেখাহ’ — কাহাঙ্ প্রাণ-নাথ?’
এত বলি’ জগমোহন গেলা ধরি’ তার হাত
 
 
‘तुमि मोर सखा, देखाह - काहाँ प्राण - नाथ?’ ।
एत बलि’ जगमोहन गेला ध रि’ तार हात ॥83॥
 
अनुवाद
 
  श्री चैतन्य महाप्रभु ने द्वारपाल से कहा: “तुम मेरे हृदय के मित्र हो। कृपया मुझे मेरे आराध्य देवता को दिखला दो।” इतना कहने के बाद वे दोनों जगमोहन नामक स्थान पर गए, जहाँ से भगवान जगन्नाथ के दर्शन होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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