श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 82
 
 
श्लोक  3.16.82 
সেহ কহে, — ‘ইঙ্হা হয ব্রজেন্দ্র-নন্দন
আইস তুমি মোর সঙ্গে, করাঙ দরশন’
 
 
सेह कहे , - इँहा हय व्रजेन्द्र - नन्दन ।
आइस तुमि मोर सङ्गे, कराङदरश न’ ॥82॥
 
अनुवाद
 
  द्वारपाल ने उत्तर दिया, "महाराजा नंद का पुत्र यहीं है; कृपया मेरे साथ आएँ, और मैं आपको दर्शन करा दूँगा।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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