श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 79
 
 
श्लोक  3.16.79 
রাত্রি-দিনে স্ফুরে কৃষ্ণের রূপ-গন্ধ-রস
সাক্ষাদ্-অনুভবে, — যেন কৃষ্ণ-উপস্পর্শ
 
 
रात्रि - दिने स्फुरे कृष्णेर रूप - गन्ध - रस ।
साक्षादनुभवे, - येन कृष्ण - उपस्पर्श ॥79॥
 
अनुवाद
 
  पूरे दिन और रात के समय, श्री चैतन्य महाप्रभु को कृष्ण की सुंदरता, सुगंध और स्वाद का प्रत्यक्ष अनुभव हुआ, जैसे कि वह कृष्ण को हाथों से छू रहे हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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