श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 74
 
 
श्लोक  3.16.74 
শ্রবসোঃ কুবলযম্ অক্ষ্ণোর্ অঞ্জনম্
উরসো মহেন্দ্র-মণি-দাম
বৃন্দাবন-রমণীনাṁ মণ্ডনম্
অখিলṁ হরির্ জযতি
 
 
श्रवसोः कुवलयमक्ष्णोर् अञ्जनमुरसो महेन्द्र - मणि - दाम ।
वृन्दावन - रमणीनां मण्डनमखिलं हरिर्जयति ॥74॥
 
अनुवाद
 
  "वृन्दावन की गोपांगनाओं के कानों के लिए श्रीकृष्ण नीले कमल के फूल के तुल्य हैं। आँखों के लिए वे अंजन हैं, वक्षस्थल के लिए इन्द्रनीलमणि की माला हैं और उनके आभूषण हैं। ऐसे श्रीहरि, श्रीकृष्ण की जय हो।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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