श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  3.16.61 
এই তিন-সেবা হৈতে কৃষ্ণ-প্রেমা হয
পুনঃ পুনঃ সর্ব-শাস্ত্রে ফুকারিযা কয
 
 
एइ तिन - सेवा हैते कृष्ण - प्रेमा हय ।
पुनः पुनः सर्व - शास्त्रे फुकारिया कय ॥61॥
 
अनुवाद
 
  इन तीनों की सेवा करने से मनुष्य को कृष्ण-प्रेम का परम लक्ष्य प्राप्त होता है। सभी प्रमाणित शास्त्रों में बार-बार पुकार-पुकार कर इसकी उद्घोषणा की गई है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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