श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 58
 
 
श्लोक  3.16.58 
তাতে ‘বৈষ্ণবের ঝুটা’ খাও ছাডি’ ঘৃণা-লাজ
যাহা হৈতে পাইবা নিজ বাঞ্ছিত সব কাজ
 
 
ताते ‘वैष्णवेर झुटा’ खाओ छा ड़ि’ घृणा - लाज ।
याहा हैते पाइबा निज वाञ्छित सब काज ॥58॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए, घृणा और संकोच को त्यागकर, वैष्णवों के भोजन के बचे हुए हिस्से को खाने का प्रयास करो, क्योंकि ऐसा करने से तुम्हें जीवन का मनचाहा लक्ष्य प्राप्त हो सकेगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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