श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  3.16.52 
নমস্ তে নর-সিṁহায
প্রহ্লাদাহ্লাদ-দাযিনে
হিরণ্যকশিপোর্ বক্ষঃ-
শিলা-টঙ্ক-নখালযে
 
 
नमस्ते नर - सिंहाय प्रह्लादाह्लाद - दायिने ।
हिरण्यकशिपोर्वक्षः - शिला - टङ्क - नखालये ॥52॥
 
अनुवाद
 
  हे नृसिंहदेव, मैं आपके प्रति अपना आदर प्रकट करता हूँ। आप प्रह्लाद महाराज के हर्ष के दाता हैं और आपके नाखूनों ने अन्यायी हिरण्यकशिपु के सीने को उसी तरह चीर डाला था जैसे एक छेनी पत्थर को चीरती है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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