श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  3.16.44 
প্রাণি-মাত্র ল-ইতে না পায সেই জল
অন্তরঙ্গ ভক্ত লয করি’ কোন ছল
 
 
प्राणि - मात्र ल - इते ना पाय सेइ जल ।
अन्तरङ्ग भक्त लय करि’ कोन छल ॥44॥
 
अनुवाद
 
  श्रीमद्भागवत के मधुर गान में संतों ने प्रत्येक पंक्ति को अपने-अपने ढंग से समझाया है। एक संत का कथन है कि प्रभु की कड़ी आज्ञा के कारण कोई भी जीव व्रत से जल न ले सकता था। कुछ अंतरंग भक्त किसी तरह से जल लेकर पी जाते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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