প্রাণি-মাত্র ল-ইতে না পায সেই জল
অন্তরঙ্গ ভক্ত লয করি’ কোন ছল
प्राणि - मात्र ल - इते ना पाय सेइ जल ।
अन्तरङ्ग भक्त लय करि’ कोन छल ॥44॥
अनुवाद
श्रीमद्भागवत के मधुर गान में संतों ने प्रत्येक पंक्ति को अपने-अपने ढंग से समझाया है। एक संत का कथन है कि प्रभु की कड़ी आज्ञा के कारण कोई भी जीव व्रत से जल न ले सकता था। कुछ अंतरंग भक्त किसी तरह से जल लेकर पी जाते थे।