श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  3.16.40 
প্রতি-দিন প্রভু যদি যা’ন দরশনে
জল-করঙ্গ লঞা গোবিন্দ যায প্রভু-সনে
 
 
प्रति - दिन प्रभु यदि या’न दरशने ।
जल - करङ्ग लञा गोविन्द ग़ाय प्रभु - सने ॥40॥
 
अनुवाद
 
  श्री चैतन्य महाप्रभु प्रतिदिन नियमित रूप से जगन्नाथ जी के मन्दिर में दर्शनार्थ जाते थे और उस समय उनका निजी सेवक गोविन्द उनके जलपात्र को लेकर उनके साथ-साथ जाता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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