श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  3.16.30 
তারে নমস্করি’ কালিদাস বিদায মাগিলা
ঝডু-ঠাকুর তবে তাঙ্র অনুব্রজি’ আইলা
 
 
तारे नमस्क रि’ कालिदास विदाय मागिला ।
झड़ - ठाकुर तबे ताँर अनुव्रजि’ आइला ॥30॥
 
अनुवाद
 
  कालिदास ने फिर से झडु ठाकुर को प्रणाम किया और उनसे जाने की आज्ञा ली। संत झडु ठाकुर उनके साथ-साथ ही चले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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