श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  3.16.27 
অহো বত শ্ব-পচো ’তো গরীযান্
যজ্-জিহ্বাগ্রে বর্ততে নাম তুভ্যম্
তেপুস্ তপস্ তে জুহুবুঃ সস্নুর্ আর্যা
ব্রহ্মানূচুর্ নাম গৃণন্তি যে তে
 
 
अहो बत श्व - पचोऽतो गरीयान् यज्जिह्वाग्रे वर्तते नाम तुभ्यम् ।
तेपुस्तपस्ते जुहुवुः सस्नुरार्या ब्रह्मानूचुर्नाम गृणन्ति ये ते ॥27॥
 
अनुवाद
 
  “हे प्रभु, जो कोई भी व्यक्ति आपके पवित्र नाम को सदा अपनी जिह्वा पर रखता है, वह दीक्षित ब्राह्मण से भी बढ़कर है। भले ही उसने श्वपच (चण्डाल) कुल में जन्म लिया हो और भौतिकता की दृष्टि से मनुष्यों में अधम हो, फिर भी वह महिमामंडित है। भगवान् के पवित्र नाम का जप करने की यही तो अद्भुत शक्ति है! जो पवित्र नाम का जप करता है, समझ लो कि वह सभी तरह की तपस्याएँ कर चुका है। वह सारे वेदों का अध्ययन कर चुका है, उसने वेदवर्णित सारे महान् यज्ञ सम्पन्न कर लिये हैं और उसने समस्त तीर्थस्थलों में पहले ही स्नान कर लिया है और सचमुच वही आर्य है।”
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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