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श्लोक 3.16.2  |
জয জয শ্রী-চৈতন্য জয নিত্যানন্দ
জযাদ্বৈত-চন্দ্র জয গৌর-ভক্ত-বৃন্দ |
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जय जय श्री - चैतन्य जय नित्यानन्द ।
जयाद्वैत - चन्द्र जय गौर - भक्त - वृन्द ॥2॥ |
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अनुवाद |
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श्री चैतन्य महाप्रभु की जय! श्री नित्यानंद प्रभु की जय! श्री अद्वैत आचार्य की जय! और महान प्रभु के सभी भक्तों की जय! |
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