श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 151
 
 
श्लोक  3.16.151 
স্বরূপ, রূপ, সনাতন, রঘুনাথের শ্রী-চরণ,
শিরে ধরি’ করি যার আশ
চৈতন্য-চরিতামৃত, অমৃত হৈতে পরামৃত,
গায দীন-হীন কৃষ্ণদাস
 
 
स्वरूप, रूप, सनातन, रघुनाथेर श्री - चरण,
शिरे धरि करि यार आश ।
चैतन्य - चरितामृत, अमृत हैते परामृत,
गाय दीन - हीन कृष्णदास ॥151॥
 
अनुवाद
 
  स्वरूप, रूप, सनातन तथा रघुनाथ दास की कृपा की अभिलाषा करते हुए और उनके पावन चरणकमलों को अपने मस्तक पर धारण करते हुए, मैं, अतिशय पतित कृष्णदास, श्री चैतन्य-चरितामृत महाकाव्य का उच्चारण कर रहा हूँ, जो कि दिव्य आनन्द रूपी अमृत से भी मधुर है।
 
 
इस प्रकार श्री चैतन्य-चरितामृत, अन्त्य लीला, के अंतर्गत सोलहवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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