एतेक प्रलाप क रि’, प्रेमावेशे गौरहरि ,
सङ्गे लञा स्वरूप - राम - राय ।
कभु नाचे, कभु गाय, भावावेशे मूर्च्छा याय,
एइ - रूपे रात्रि - दिन याय ॥150॥
अनुवाद
इस प्रकार उन्मत्त की भाँति बातें करते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु प्रेम-विह्वल हो गए। स्वरूप दामोदर गोस्वामी तथा रामानन्द राय - अपने इन दो मित्रों के संग कभी नाचते, कभी गाते, तो कभी प्रेम में मूर्छित हो जाते। श्री चैतन्य महाप्रभु अपने दिनों-रातों को इसी प्रकार बिताते।