श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 150
 
 
श्लोक  3.16.150 
এতেক প্রলাপ করি’, প্রেমাবেশে গৌরহরি,
সঙ্গে লঞা স্বরূপ-রাম-রায
কভু নাচে, কভু গায, ভাবাবেশে মূর্চ্ছা যায,
এই-রূপে রাত্রি-দিন যায
 
 
एतेक प्रलाप क रि’, प्रेमावेशे गौरहरि ,
सङ्गे लञा स्वरूप - राम - राय ।
कभु नाचे, कभु गाय, भावावेशे मूर्च्छा याय,
एइ - रूपे रात्रि - दिन याय ॥150॥
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार उन्मत्त की भाँति बातें करते हुए श्री चैतन्य महाप्रभु प्रेम-विह्वल हो गए। स्वरूप दामोदर गोस्वामी तथा रामानन्द राय - अपने इन दो मित्रों के संग कभी नाचते, कभी गाते, तो कभी प्रेम में मूर्छित हो जाते। श्री चैतन्य महाप्रभु अपने दिनों-रातों को इसी प्रकार बिताते।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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