श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 149
 
 
श्लोक  3.16.149 
বেণুর তপ জানি যবে, সেই তপ করি তবে,
এ — অযোগ্য, আমরা — যোগ্যা নারী
যা না পাঞা দুঃখে মরি, অযোগ্য পিযে সহিতে নারি,
তাহা লাগি’ তপস্যা বিচারি
 
 
वेणुर तप जानि यबे, सेइ तप करि तबे ,
ए - अयोग्य, आमरा - योग्या नारी ।
या ना पाञा दुःखे मरि, अयोग्य पिये सहिते नारि ,
ताहा ला गि’ तपस्या विचारि ॥149॥
 
अनुवाद
 
  “गोपियों ने मन ही मन सोचा, ‘ये वंशी तो अपने पद के लायक बिल्कुल नहीं। हम जानना चाहती हैं कि इस वंशी कैसे तपस्याएँ कीं, ताकि हम भी वही तपस्या कर सकें। ये वंशी तो अयोग्य है, फिर भी कृष्ण इसे अपने होठों से लगा कर अमृत का पान कर रहे हैं। यह देखकर हम योग्य गोपियाँ दुःख से तड़प रही हैं। इसलिए हमें यह पता लगाना चाहिए कि पिछले जन्म में वंशी ने कौन-कौन सी तपस्याएँ की थीं।’”
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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