श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 146
 
 
श्लोक  3.16.146 
মানস-গঙ্গা, কালিন্দী, ভুবন-পাবনী নদী,
কৃষ্ণ যদি তাতে করে স্নান
বেণুর ঝুটাধর-রস, হঞা লোভে পরবশ,
সেই কালে হর্ষে করে পান
 
 
मानस - गङ्गा, कालिन्दी, भुवन - पावनी नदी ,
कृष्ण यदि ताते करे स्नान ।
वेणुर झुटाधर - रस, हञा लोभे परवश ,
सेइ काले हर्षे करे पान ॥146॥
 
अनुवाद
 
  जब कृष्ण यमुना और स्वर्गलोक की गंगा जैसी विश्व को पवित्र करने वाली नदियों में स्नान करते हैं, तब उन नदियों के महान व्यक्तित्व लोभ और हर्ष के साथ उनके होठों से अमृत समान रस के अवशेषों को पीते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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