श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 143
 
 
श्लोक  3.16.143 
গোপী-গণ, কহ সব করিযা বিচারে
কোন্ তীর্থ, কোন্ তপ, কোন্ সিদ্ধ-মন্ত্র-জপ,
এই বেণু কৈল জন্মান্তরে?
 
 
गोपी - गण, कह सब करिया विचारे
कोन् तीर्थ, कोन् तप, कोन् सिद्ध - मन्त्र - जप, ।
एइ वेणु कैल जन्मान्तरे? ॥143॥
 
अनुवाद
 
  "हे गोपी! ये बंशी विगत जीवन में कितने पुण्य कर चुकी होगी, ठीक से जान लो। हम ये नहीं जानती कि इस्ने कितने तीर्थों पर दर्शन किए, कौन कौन-से तप किये, या किस सिद्ध मन्त्र का जप किया।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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