“अरे गोपियो, स्वामी श्रीकृष्ण के अधरों का अमृत स्वतंत्र रूप से पीकर और हमें गोपियों को, जिनके लिए दरअसल ये अमृत है, केवल थोड़ा-बहुत अवशिष्ट स्वाद छोड़कर, इस बांसुरी ने कौन से पुण्य कर्म किये होंगे? बांस के पेड़, वंशी के पूर्वज, खुशी के आंसू बहा रहे हैं। उसकी माँ, नदी जिसके तट पर बाँस उत्पन्न हुए हैं, हर्ष महसूस कर रही है, इसलिए उसके खिलते हुए कमल-पुष्प उसके शरीर पर रोमांच की तरह दिखाई दे रहे हैं।"