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श्लोक 3.16.138  |
তাতে জানি, — কোন তপস্যার আছে বল
অযোগ্যেরে দেওযায কৃষ্ণাধরামৃত-ফল |
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ताते जानि , - कोन तपस्यार आछे बल ।
अयोग्येरे देओयाय कृष्णाधरामृत - फल ॥138॥ |
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अनुवाद |
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इसलिए ये समझना चाहिए कि इस अयोग्य व्यक्ति ने अवश्य ही किसी तप के बल पर कृष्ण के होठों का अमृत प्राप्त किया होगा। |
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