श्री चैतन्य चरितामृत  »  लीला 3: अन्त्य लीला  »  अध्याय 16: श्री चैतन्य महाप्रभु द्वारा कृष्ण के अधरों का अमृतपान  »  श्लोक 138
 
 
श्लोक  3.16.138 
তাতে জানি, — কোন তপস্যার আছে বল
অযোগ্যেরে দেওযায কৃষ্ণাধরামৃত-ফল
 
 
ताते जानि , - कोन तपस्यार आछे बल ।
अयोग्येरे देओयाय कृष्णाधरामृत - फल ॥138॥
 
अनुवाद
 
  इसलिए ये समझना चाहिए कि इस अयोग्य व्यक्ति ने अवश्य ही किसी तप के बल पर कृष्ण के होठों का अमृत प्राप्त किया होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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